विजय शंकर सिंह / कल तक जो मित्र बचत में व्याज दर की कमी का औचित्य ढूंढ ढूंढ कर तर्क दे रहे थे, वे आज सुबह से उस आदेश के मुल्तवी किये जाने के तर्क देने लगे हैं। इसी को दासत्व कहते हैं। सत्ता की रस्सी से लिपटी कठपुतलियों की तरह इशारे पर नाचते और हुक्म बचाने के लिये अभिशप्त रहता है दास। जब आप अपनी ही चुनी सरकार से कुछ पूछने की हैसियत खो बैठें, आप की जवाबतलबी, सरकार को आप की ज़बानदराजी लगने लगे, और तब भी आप खामोश बने रहें तो इसे क्या कहा जाय ?
लंबी लड़ाई के बाद सरकार की कारगुजारियों पर उसकी आंखों में आँखे डाल कर सवाल पूछने के मिले अधिकार, 2014 के बाद, खुद ही सवालों के बादलों से घिरने लगे हैं, पर दासत्त्व की अफीम की पिनक का नशा अब भी तारी है। हम एक साजिश की गिरफ्त में हैं। साज़िश है, देश की अधिकांश पूंजी पर, चंद पूंजीपतियों का अबाध अधिकार करवा देना। सरकार इस साजिश को रोकने वाली नहीं है, बल्कि वह इस साजिश की सूत्रधार है।
यह क्रोनी कैपिटलिज़्म यानी गिरोहबंद पूंजीवाद है। यह पूंजीवाद का सबसे घृणित रूप भी है। और यह प्रत्यूष के पहले का घटाटोप अंधकार भी है। इस साजिश को पहचानिए साथियों और इस तमस में सचेत, सजग तथा सतर्क बने रहिये।
- लेखक एक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं
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